kartik maas ki kahani 2022 || कार्तिक मास की कथा | kartik maas ki katha 2022 || कार्तिक मास की कहानी

एक ब्राह्मण ब्राह्मणी थे| सात कोस गंगा जमुना नहाने जाया करते थे| ब्राह्मणी बहुत थक जाती थी| एक दिन बोली बेटा होता तो बहू आती| घर में खाना बना हुआ मिलता, कपड़े धुले मिलते| ब्राह्मण बोला तूने बड़ी बात कही| ला मैं तेरे लिए बहू ला देता हूँ\ एक पोटली में चून बांध ड़े उसमे थोड़ी सी मोहर अशरफी डाल ड़े| उसने पोटली बांध दी| ब्राह्मण चल दिया| कुछ दूर पर जमुना जी के किनारे लड़कियां अपने-अपने मिट्टी के घर बनाकर खेल रहीं थी| उनमे से एक बोली मैं तो अपना घर नहीं बिगाडती| मुझे तो रहने को चाहिएगा| ब्राह्मण को वही लड़की मन भा गयी|

अपने मन में सोचने लगा यही एक समझदार सी लड़की है| वह उसके पीछे पीछे हो लिया| जब वह घर पहुंची तो बोला, बेटी मैं भूखा हूँ| अपनी माँ से पूछ ले मेरी चार रोटी पो देगी क्या? कार्तिक का महिना है मैं किसी के घर की रोटी नहीं खाता| मेरे पास यह चून है अपनी माँ को दे दियो और अपनी माँ से कह दियो कि चून छान लेंगी| अच्छी बात है बाबा उसने अपनी माँ से कहा कि माँ बाहर बाबा बैठा है उसकी रोटी बना दो और आटा छान लेना| उसने आटा छाना उसमे मोहर अशरफी निकली| वह बोली जिसके आटे में इतनी मोहर अशरफी हैं उसके घर में कितनी होंगी| जब बाबा रोटी खाने बैठा उसकी माँ बोली बाबा तुम लड़के की सगाई करने जा रहे हो| बाबा कहने लगा कि मेरा लड़का तो काशी जी पढ़ने गया हुआ है| अगर तुम कहो तो खंडे कटारे से तुम्हारी लड़की को ब्याह के ले जाऊँ| अच्छी बात है बाबा वो ब्याह कर ले गया|

आकर बोला रामू की माँ, किवाड़ खोल देख मैं तेरे लिए बहू लाया हूँ| बुढ़िया बोली दुनिया तो बोली मारे, तू भी बोल मर दे| हमारे तो सात जन्म भी बेटा नहीं है तो बहू कहाँ से आएगी| ना, तू किवाड़ तो खोल| उसने किवाड़ खोले देखा तो सामने बहू खड़ी है| सास आदर सत्कार से बहू को अंदर ले आई| बूढ़े बुढ़िया नहाने जाते | बहू सारा काम करती, खाना बनाती, कपड़े धोती रात को उनके पाँव दबाती| इस तरह से बहुत समय निकल गया| सास बोली बहू चूल्हे की आंच ना बुझने दियो मटके का पानी ना खत्म होने दियो|

एक दिन चूल्हे की आंच बुझ गयी| भागी-भागी बहू पड़ोस में गयी| बोली पड़ोसन मुझे थोड़ी सी आंच दे दो मेरे चूल्हे की आंच बुझ गयी है| मेरे सास ससुर आते ही होंगे| सुबह चार बजे के गंगा जमुना नहाने गए हुए हैं| पड़ोसन ने कहा तू तो बावली है तुझे तो ये यूं ही उठाकर ले आए हैं| इनके सात जन्म भी कोई बेटा नहीं है| बहू बोली, ना इनका बेटा तो काशी जी पढ़ने गया है| बोली ना झूठ बोला है| बोली मैं अब क्या करूँ? उसने कहा जली फूंकी रोटी कर दे, अलुनी दाल कर दे, खीर की कडछी दाल में, दाल की कडछी खीर में कर दे|

उसको पड़ोसन की सीख लग गयी| उसने ऐसा ही किया| सास ससुर आए| आज ना तो आदर सत्कार किया ना ही उनके कपड़े लिए| खाना लगा दिया| सासू बोली बहू ये क्या ये तो जली फुंकी रोटी है, अलुनी दाल है| खालो सासू जी तुम एक दिन खलोगी तो कुछ ना होगा| मुझे तो जीवन भर अलुनी रहना है| सासू बोली बहू को तो पड़ोसन की सीख लग गयी| रात को सो गयी| सुबह भगी-भगी पड़ोसन के घर गयी बोली अब क्या करूँ मैं| बोली सातों कोठो की चाबी मांग ले| जब सासू जाने लगी तो आगे अड़कर खड़ी हो गयी बोली, बाद में जाना पहले मुझे सातों कोठों की चाबी दे दो|

ससुर बोला चाबी दे दो| आज भी इसका, कल भी इसका| हमारा क्या है| आज मारे कल दूसरा दिन| पीछे से बहू ने कोठे खोल के देखे| किसी में अन्न, किसी में धन, किसी में बर्तन, किसी में कपड़े अटूट भंडार भरे पड़े हैं| सातवाँ कोठा खोल के देखा तो उसमे गणेश, लक्ष्मी, पीपल, पथवारी, कार्तिक के ठाकुर राय, दामोदर, तुलसा जी का बिड़ला, छत्तीश करोड़ देवी देवता विराजमान हैं| गंगा जमुना बह रही हैं| तिलक थापे लगाए चौकी पर बैठा एक लड़का माला जप रहा है| बोली तू कौन, मैं तेरा पति हूँ| किवाड़ बंद कर दे| मेरे माँ बाप आएंगे जब खोलियों| अब तो बहू बहुत खुश हुई छत्तीश प्रकार के भोजन बनाए| सोलह शृंगार किया रांची मांची डोले|

सास ससुर आए बड़े प्यार से उनसे बात की, उनके कपड़े धोये, खाना खिलाया| बूढ़ा बोला बहू तो धन देख के राजी हो गयी| बहू सास के पैर दबाती जाए और कहती जाए तुम इतनी दूर बारह कोस गंगा जमुना नहाने जाती हो| थक जाती होगी| तुम घर में नहा लिया करो| सास बोली बावली कहीं घर में भी गंगा जमुना बहती हैं| बहू बोली हाँ माँजी चलो मैं दिखती हूँ| उसने सातवाँ कोठा खोलकर दिखाया तो उसमे गणेश, लक्ष्मी, पीपल, पथवारी, कार्तिक के ठाकुर राय, दामोदर, तुलसा जी का बिड़ला, छत्तीश करोड़ देवी देवता विराजमान हैं| गंगा जमुना बह रही हैं| तिलक थापे लगाए चौकी पर बैठा एक लड़का माला जप रहा है|

माँ बोली तू कौन? बोला माँ मैं तेरा बेटा हूँ तू कहाँ से आया| मुझे तो कार्तिक के देवता ने भेजा है| माँ बोली बेटा ये दुनिया क्या जानेगी| क्या जानेगी मेरे घर का पति (धन)| क्या जानेगी दोरानी जेठानी| क्या जाने अगड़ पड़ोसन कि तू मेरा बेटा है| उसने पंडित से पूछा तो वह बोला परली पार पे बहू बेटा खड़े हों| इस पार बुढ़िया खड़ी हो| चाम की अंगिया पहने हो छती में से दूध की धार निकले बेटे की दाढ़ी मूंछ भींगे, पवन पावनी से गठ जोड़ा बंधे तो सब जाने ये बुढ़िया का बेटा है| उसने ऐसा ही किया| चाम की अंगिया फट गयी छाती में से दूध की धार निकली| बेटे की दाढ़ी मूंछ भीगी| पवन पावनी से बहू बेटे का गठजोड़ा बांध गया| ब्राह्मण ब्राह्मणी बहुत खुश हुये| हे कार्तिक के ठाकुर राय दामोदर कृष्ण भगवान जैसे उसे बहू बेटा दिये वैसे सबको दियो| जैसे उसकी इच्छा पूरी की वैसे सबकी करियों| कहते सुनते हुंकार भरते का|

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